इस्लाम के वह चार खलीफा (खुलफ़ा-ए-राशिदून)

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खलीफा का मतलब होता है जो शख्स नबी ﷺ का जानशीन हो और जिसका काम अल्लाह ताला और  रसूलअल्लाह ﷺ के हुक्म के मुताबिक़ मुसलमानो को मतलूब क़ियादत के साथ फराम करना था। खलीफा का चुनाव लोगो पर हुक्मरानी के लिए नहीं था बल्कि अम्नो पसंद की तरफ बढ़ते मुआशरे को इस्लामी क़ानून और कवायद के मामले में रहनुमा के तौर पर किया जाता था।

इस मौजू पर में थोड़ी और रौशनी डालना चाहता हूँ। क्यूंकि मुआशरे में बहुत से ऐसे लोग है जो इन खलीफाओं के बारे में जानते तक नहीं है की यह कौन शक्सियत है और इस्लाम में इनका क्या मर्तबा है ।

रसूलअल्लाह ﷺ की वफ़ात के फ़ौरन बाद मसला खड़ा हो गया की कौन ख़लीफ़तुल रसूलअल्लाह बनेगा। वजह थी की आपके जाने के बाद लोग मुर्तद होना शुरू हो गए और इस्लाम के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया

(सही समझ के लिए हमारी वेबसाइट पर जाकर उमर सीरीज देखे)

आज हम इस्लामी तारीख के चार सालेह खलीफाओं के बारे में बात करते है जिन्हे खुलफ़ा-ए- राशिदून भी कहा गया।

(i)हज़रत अबू बक्र (रजि अन्हा) –अस-सिद्दीक़

8 जून, 632-अगस्त 23, 634 ए डी)

573 इ में पैदा हुए  हज़रत अबू बक्र (रजि अन्हा) पैगम्बर ﷺ से लगभग 2 साल छोटे हैं, हज़रत अबू बक्र (रजि अन्हा) मक्का में कुरैशी कबाइल के बनू तमीम के एक अजीम खानदान से थे। आपका असल नाम अब्दुल्ला इब्न अबू कुहाफ़ा था। उन्होंने कारोबार को  एक पेशे के रूप में शुरू किया और कुछ तिजारती कारोबार रसूलुल्लाहﷺ की सोहबत में साथ किया। आप  हज़रत मुहम्मदﷺ के सबसे करीबी साथी थे और आप  सच्चाई, ईमानदारी और रहमदिली की मिसाल रहे है।

“ओह अबू बक्र! तुम जन्नत के तालाब पर मेरे साथी बनोगे क्योंकि तुम गुफा में भी मेरे साथी थे। ”(तिरमिधि शरीफ)

हज़रत अबू बक्र (रजि अन्हा) पहले शख्स थे जिन्होंने सबसे पहले इस्लाम अपनाया और आपको अल्लाह के पैगंबरﷺ से  “अस-सिद्दीक” (हमेशा सच कहने वाला और यकीन करने वाला) का खिताब हासिल किया, आपने अपनी पूरी ज़िन्दगी इस्लाम की सच्ची खिदमत  में गुज़र दी और अपने पास जितनी भी मालो दौलत थी उसे कमजोर गुलामो को उनके जालिम मालिकों से आजाद करने में खर्च कर डाली।  जिनमें से रसूलुल्लाह के सबसे करीबी साथियों में से एक सहाबा और मुअज्जिन (मस्जिद में अजान देने वाला) हज़रत बिलाल (रजि अन्हा) थे।

 “अबू-बक्र ने अपनी जायदाद और मिलकियत और सोहबत के साथ मेरी बहुत हिमायत की है। अगर मुझे उम्मत से खलील दोस्त को (मददगार  दोस्त) लेना होता तो मैं अबू बक्र को ज़रूर ले जाता। ”(बुखारी)

सिद्दीक ए अकबर (रजि अन्हा) को अपनी बेटी हज़रत आयशा (रजि अन्हा) का  पैगंबरﷺ से निकाह करने का ऐजाज हासिल हुआ, जो हज़रत खदीजा (रजि अन्हा) के बाद रसूलﷺ की सबसे पसंदीदा बीवी बनीं। अबू बक्र (रजि अन्हा) ने अल्लाह के रसूलﷺ के साथ लगभग सभी ग़ज़वातों में लड़ाई भी की। इस्लाम के पहले खलीफा के तौर पर आपने बिखरे हुए मुसलमानो को इस्लाम के झंडे तले एक जमात बनाया और आपने ही क़ुरआने पाक को जो उस वक़्त सिर्फ सहाबाओ  के सीनो में महफूज़ था  इकठ्ठा करवाकर एक पाक अल्लाह की किताब की शक्ल मैं पिरोया, आपकी खिलाफत का समय बहुत कम था, यानी केवल 27 महीने। हज़रत अबू बक्र (रजि अन्हा) की वफ़ात  बरोज पीर, 23 अगस्त, 634 इ को हुई  और आपको जन्नतुल बगी में रसूलुल्लाहﷺ के बगल में दफ़नाया गया।

(ii) हज़रत उमर (रजि अन्हा) –अल-फारूक

(23 अगस्त, 634-नवंबर 7, 644 ए डी)

 

580 इ  में पैदा हुए, हज़रत उमर (रजि अन्हा) रसूलुल्लाहﷺ से लगभग 10 साल छोटे हैं, हज़रत उमर इब्न अल खत्ताब  (रजि अन्हा) मक्का के कुरैशी कबाइल  के बनु आदि खानदान से  थे। आप हज़रत उमर (रजि अन्हा) कम उम्र में मवेशी चराने का काम करते थे, और उस समय मक्का के कुछ पढ़े-लिखे लोगों में भी शामिल थे। अपनी जवानी के दौर में आप (रजि अन्हा) जिस्मानी तौर से बहुत  मजबूत थे और एक मशहूर पहलवान के तौर पर माने जाते थे। आप उमर(रजि अन्हा)  (नाउजूबिल्लाह) हज़रत मुहम्मद के ﷺ  क़त्ल के इरादे से जा रहे थे, लेकिन अपनी बहन के घर में कुरान की आयतें- खब्बाब(रजि अन्हा)  से सुनने के बाद, आपको हिदायत मिली और रसूलुल्लाहﷺ के हाथों इस्लाम कबूल कर लिया। । बाद में, आपने दीन की अजीम खिदमात फराम की।  आपकी गैर मामूली सलाहियत की वजह से आपको नबी ए पाक रसूलुल्लाहﷺ ने अल-फारूक के ख़िताब से नवाजा (सही और गलत के बीच फैसला करने वाला) ।

बेशक अल्लाह ने उमर की जबान और दिल में सच रखा है”  (तिरमिधि)

 आपने बहुत ही सादी ज़िन्दगी फराम की । अपने खिलाफत के दौरान, इस्लामी अक़ीदा रोमन और फारसी इलाको समेत दुनिया के दूर के कोने तक पहुंच गया। इस्लाम के दूसरे खलीफा होने के नाते, फारूक ए आज़म (रजि अन्हा) के अहम् वजाहत में मुस्लिम मुआशरे में अम्नो अमान  और इंसाफ का अमल शामिल था  बैतुल माल का की बहाली और मालियत की फरहमी, बड़े सूबो की छोटे सूबो में तब्दीली , इस्लामी हिजरी के कलैंडर का ईजाद शामिल हैं। आपकी इन्ही ज्याति ख़ुसूसियात की वजह से आप रसूलअल्लाह ﷺ आपका एहतराम करते थे।

 

“अगर मेरे बाद कोई  नबी होता तो वह यक़ीनन उमर बिन खत्ताब होते” (तिर्मिदी)

 

हज़रत उमर (रजि अन्हा) का ऐसा रुतबा था की उनकी  जात को नबियों की जात के साथ आँका गया। फारूक ए आज़म (रजि अन्हा) को एक यहूदी बागी ने  मस्जिद में सलाह के दौरान तलवार से गहरे वार किये बदकिस्मती से इस वाक़िये के तीन दिन बाद  7 नवंबर, 644 ई को आप वफ़ात पा गए आपकी ख्वाहिश पर , हज़रत आइशा(रजि अन्हा) आपको  रसूलुल्लाह के करीब हज़रत उमर (रजि अन्हा) को दफनाने की रजामंदी दी।

 

(iii) हज़रत उस्मान (रजि अन्हा) -अल-ग़नी

(11 नवंबर, 644-जुलाई 17, 656 ए डी)

573 इ में पैदा हुए, अल्लाह के नबी ﷺ  से लगभग 2 साल छोटे हैं, हजरत उस्मान इब्न अफान (रजि अन्हा) मक्का के कुरैशी कबाइल के उमैय्या खानदान के थे। वह उस समय पूरे मक्का में चंद आलिम लोगों में से थे। जब आपके करीबी दोस्त हज़रत अबू बक्र (रजि अन्हा) ने आपको  इसके बारे में बताया तो आपने इस्लाम को आसानी से कबूल कर लिया । आपको  नबी ﷺ   की दो स्वालेह बेटियों से शादी करने का एजाज़ हासिल हुआ, जिसने उन्हें धुन नूरैन (दो रोशनी का सरताज) का खिताब दिलाया। आप एक अमीर इंसान थे और अपनी मिलकियत का ज्यादा इस्तेमाल  इस्लाम की हक़ीक़ी खिदमत में बिताया, जैसे कि मदीना में यहूदी से एक कुआँ खरीदना और सभी मुसलमानों के लिए इस्तेमाल। जो जमीन मज्सिदे नबवी के पास थी आपने ज्यादातर जमीनो को खरीद लिया और  मस्जिद ई नबवी की सरहद को बढ़ाया। उनकी सखावत की वजह से आपको  आमतौर पर अल-गनी के रूप में जाना जाता था। आखिरी ग़ज़वा के समय, यानी तबूक की लड़ाई में , हज़रत उस्मान (रजि अन्हा) ने घोड़ों, ऊँटों और सोने के सिक्कों के जरिये से एक तिहाई मुस्लिम फ़ौज  (लगभग 10,000 आदमी) को मजबूत किया। इस्लाम की जबरदस्त हिमायत की वजह से हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया:

इस दिन से, कुछ भी‘ उस्मान को नुकसान नहीं पहुंचाएगा चाहे वह कुछ भी करे। “(तिर्मिधि)

अल्लाह के रसूल ﷺ ने अशरा मुबाशिरा (रसूलुल्लाह के जन्नती 10 सहाबा) के बीच इब्न अफान (रजि अन्हा) की तारीफ की । उन्हें कातिब ई वही होने का भी ख़िताब हासिल हुआ । आप  उस्मान (रजि अन्हा)  इस्लाम के तीसरे खलीफा बन गए, और उनके समय के दौरान, उन्होंने शामली अफ्रीका जैसे दुनिया के दूर के इलाको पर कब्जा करके, पहले मुस्लिम जहाजी फ़ौज का क़याम किया और रोमन इलाके और बीजान्टिन 500  सल्तनत को  हराया।  उस्मान (रजि अन्हा) ने  मुस्लिमों को कुरान की एक आयत पर जमा किया आपकी इन्ही खूबियों से खुश होकर रसूल ﷺ आपको अपने करीब पाते थे।

हर पैगंबर का जन्नत में उसके एक खास साथी होगा, और मेरे साथ उस्मान होगा। (इब्न-ए-माजाह)

 

खिलाफत के दौरान बदकिस्मती से बागियों ने आपके नरम दिली के फ़ायदा उठाकर ताकतवर हो गए और इस तरह 17  जुलाई  656  ए डी को आपको शहीद कर दिया आप 84 साल की उम्र मैं वफ़ात पा गए। आपको जन्नतुल बगी में दफनाया गया।

 

(iv)हज़रत अली (रजि अन्हा) –असदुल्लाह

( 20th रमजान 656-661  ए डी)

 

600 A।D में जन्मे, हज़रत अली (रजि अन्हा)  पैगंबर मुहम्मद ﷺ के पहले चचेरे भाई हैं और आपसे लगभग 30 साल छोटे हैं, हज़रत अली इब्न अबी तालिब (रजि अन्हा) मक्का में कुरैशी कबाइल के बनु हाशिम  खानदान के एक बड़े इज़्ज़तदार खानदान के थे। आप सभी नौजवानो में पहले थे जिन्होंने सबसे पहले  इस्लाम क़बूल किया था। हज़रत अली (रजि अन्हा) ने रसूलअल्लाह ﷺ के लिए अपनी  जान की भी परवाह न करते हुए आपकी हिफाज़त की। एक रात जब मक्का के मुशरिकीन रसूलअल्लाह ﷺ को (नाउजूबिल्लाह) मारने का  इरादा कर रहे थे , उस रात अली (रजि अन्हा) आपकी जगह आपके बिस्तर पर सोये। अगले दिन आप रसूलअल्लाह ﷺ ने लोगो की अमानत जो लोग आपके पास छोड़  गए थे वापस की और मदीना चले गए। हज़रत अली (रजि अन्हा) को हज़रत मुहम्मद रसूलअल्लाह ﷺ की सबसे छोटी और सबसे प्यारी बेटी हज़रत फ़ातिमा (रजि अन्हा) से निकाह का एजाज़ हासिल हुआ और उनसे आपके तो बेटे  हज़रत इमाम हुसैन (रजि अन्हा) और हज़रत इमाम हसन (रजि अन्हा) हुए। जिन्होंने बाद में इस्लाम के लिए बड़ी क़ुर्बानियां दी। अपने इस्लाम को कायम रखने के लिए बहुत सी जंगे लड़ी और पहली ही जुंग से भरपूर बहादुरी दिखाई मिसाल के तौर पर जंग-ए- बदर। अपने जोश और जूनून से काफिरो को खदेढ़ दिया।  ग़ज़वा ए ख़ैबर के मौके पर, उन सभी लड़ाइयों में सबसे कठिन माना जाता है, जो  पैगंबरﷺ  ने लड़ी थीं, हज़रत अली (रजि अन्हा) ने अपनी ताक़त दिखते हुए असदुल्लाह (अल्लाह का शेर) का खिताब हासिल किया था। आपने अल्लाह को याद रखते हुए बड़ी सादी ज़िन्दगी गुज़ारी और रसूल अल्लाह को आप बहुत प्यारे थे।

 

कोई शक नहीं, अली मेरे से है और मैं अली से हूं, और अली मेरे बाद हर मोमिन का रहनुमा होगा, और उनसे  हरएक (मोमिन)  मोहब्बत  रखेगा, उससे कोई भी नफरत नहीं करेगा। (तिरमिधि)

 

हज़रत अली (रजि अन्हा) को अरबी जबान  का खासा इल्म था जाहिरी तौर पर क़ुरान सीखने में । इस्लाम के चौथे खलीफा होने के नाते, हज़रत अली उल मुर्तज़ा (रजि अन्हा) ने मुसलमानों को एक करने और अम्नो अमान क़ायम करने  की पूरी कोशिश की, लेकिन मुशरिक़ीनों का बागीपन बहुत मजबूत हो गया था। आपने  उनका मुकाबला किया और नहरवान की लड़ाई में बागियों को तबाह किया और  उमय्यद को हराकर जज़िया  में सुधारों की शुरूआत की ,जब आप  63 वर्ष के थे, तो हज़रत अली (रजि अन्हा) को बागियों ने उस वक़्त जहरीली तलवार से शहीद कर दिया था, जब आप रमज़ान की 20 वीं तारीख को 40 हिजरी  (661 ) ए डी) में मस्जिद में फजर नमाज़ पढ़ाने जा रहे थे।

 

मुख़्तसर तौर पर इस्लामी तारीख के यह चारो खलीफा हज़रत अबू बक्र(रजि अन्हा) हजरत उमर(रजि अन्हा) हज़रत उस्मान(रजि अन्हा) और हज़रत अली(रजि अन्हा) बड़े सालेह  और नेक सहाबा थे इन्होने तमाम ज़िन्दगी सिर्फ अल्लाह की इबादत और रसूलअल्लाह की सुन्नत पर गुज़ारी और उन्हें आगे बढ़ाया

अल्लाह हम सब को इनके नक़्शे कदम पर चलने के तौफ़ीक़ अता फरमाए ।अमीन ।

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