जंगे बद्र का बदला लेने के लिये अबू सुफ़ियान ने तीन हज़ार ( 3000) की फ़ौज से मदीने पर चढ़ाई की। एक हिस्से का अकरमा इब्ने अबी जेहेल और दूसरे का ख़ालिद बिन वलीद सरदार था। आप मुहम्मदﷺ के साथ पूरे एक हज़ार आदमी भी न थे। ओहद पर लड़ाई हुई जो मदीने से 6 मील की दूरी पर है। आप मुहम्मदﷺ ने मुसलमानों को ताकीद कर दी थी कि कामयाबी के बाद भी पुश्त (पीछे) के तीर अंदाज़ों का दस्ता अपनी जगह से न हटे, मुसलमानों की जीत होने को थी ही कि तीर अंदाज़ों का वही दस्ता जिसके हटने को मना किया था ख़ुदा और रसूलﷺ के हुक्म की खि़लाफ़ माले ग़नीमत के लालच में अपनी जगह से हट गया जिसके नतीजे में मुमकिन जीत हार में बदल गई। ओहद की घमासान लड़ाई में मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलयही वसल्लम के प्यारे चचा जान हजरत हमज़ा (रदीयल्लाहु अन्हु) किसी शेर की तरह आगे बढ़ते जा रहे थे। जिधर उनके कदम बढ़े जाते दुश्मन दायें-बाएं ऐसे फट जाते जैसे कोई तेज़ लहर की मार से काई फटती चली जाती है। आज हजरते हमज़ा रदीयल्लाहू अन्हु हर खतरे से बेख़ौफ़ हो कर लड़ रहे थे। सामने से उनको शिकस्त देना कोई आसान काम नहीं था- उधर हिंदा ने वाहशी को यकीन दिलाते हुए कहा था “मैं तुम्हें इतना इनाम दुगी की तुम सोच भी नहीं सकते” अबू सुफियान की बीवी हिंदा की सबसे बड़ी तमन्ना थी ये- “ऐ मेरे खुदा हुबुल——(हिंदा ने अपने खुदा के आगे झुकते हुए कसम खायी)—“मैं वादा करती हूँ की अगर हमज़ा शहीद हो गए तो मैं उनका हार बना कर पहनूंगी, मैं उनका कलेजा चबा कर अपने दिल को ठंडा करुगी।”और ऐसा ही हुआ वाहशी ने अपनी बरछी फेंक कर उनकी नाफ़ (नाभि) पर मारा। हजरते हमज़ा रदीयल्लाहू अन्हु वही मैदान में गिर गए। एक ज़ख़्मी शेर की तरह उन्होंने पलट कर देखा- वाहशी अपनी कामयाबी पर मुस्कुरा रहा था। हमज़ा उठ भी न सके और धीरे-धीरे उनकी आँखे बंद हो गयी। सलमान अल फ़ारसी (रजि अन्हा) के कहने पर आप मुहम्मद ﷺ ने मदीना मैं ख़ंदक़ खुदवा दी जिससे की दुश्मन के हमले को नाकाम किया जा सके ख़ंदक़ खोदने के दौरान वाक़िआ पेश आया जब आप सलमान अल फ़ारसी (रजि अन्हा) एक पत्थर पर कुदाल चला रहे थे तो वह टूट नहीं रहा था आप मुहम्मद ﷺ ने उस पत्थर पर तीन बार चोट की और तीनो बार ही उससे चिंगारी निकली. हर बार आप मुस्कुरा दिए जब इसकी वजह पूछी गयी तो आप मुहम्मद ﷺ ने एलान फ़रमाया की अल्लाह सुबहाना ताला ने आपको फारस, यमन और सीरिया पर फतह बख़्श दी है. आगे देखे
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