गज़वा ए बदर और ओहद के बाद मुसलमान खासी अमली फौजी तरबियत हासिल कर चुके थे एक अहम् वाक़िये की वजह से मदीने की सियासी सूरते हाल भी तब्दील हो चुकी थी. मदीना की यहूदी कबीले बनु नादिर ने नबी ए पाक मुहम्मद ﷺ की क़त्ल की नापाक साजिश की इस पर उनको मदीना बदर कर दिया था और वह मदीना की बाहर खैबर में आबाद हो गए थे क़ुरैश को साथ लेकर इन्होने मुसलमानो की बढ़ती क़ूवत को रोकने का फैसला लिया. जनवरी 627 इ में 10000 का लश्कर अबू सुफियान की सरदारी में मदीना पर हमलावर होने की इरादे से रवाना हुआ इसके मुक़ाबले मुसलमान फौज सिर्फ 3000 सिपाहियों पर मुजतमिल थी. लगातार 4 हफ्तों तक क़ुरैश की फौज मदीना के करीब मदीना को घेरे रहे लेकिन हमला करने में कामयाब न हो सके आखिर आजिज़ आकर उन्होंने ख़ंदक़ को पार करके शहर में दाखिल होने का फैसला लिया मुसलमानो को इसका इल्म पहले से ही था लिहाज़ा उन पर तीर और पत्थरो की बारिश कर दी गयी क़ुरैश की तरफ से अम्र इब्न अब्दवद ने मुसलमानो को मुक़ाबले के लिए ललकारा हज़रत अली इब्न अबू तालिब (रजि अन्हा) ने इस पेशकश को कबूल किया और उसे मौत के घाट उतार दिया. रात के वक़्त सर्द हवाओ का जोर चल रहा था और खाने पीने का निजाम भी ख़त्म हो चला था उधर क़ुरैश के ऊंठ और घोड़े बीमार हो चले थे इसके चलते क़ुरैश बदहाल हो चले थे और उन्होंने वापसी का फैसला कर लिया- ख़ंदक़ की नाकामी के बाद क़ुरैश अपने घरो को वापिस लौट गए. रसूल अल्लाह ﷺ ने भी अपने सहाबाओ को साथ लेकर मक्का की जियारत का हुक्म दिया. तमाम मुसलमान हरम शरीफ की जियारत के लिए निकले लेकिन बीच रास्ते में ही इनको रोक लिया गया इससे तमाम अरब क़ुरैश के खिलाफ हो गए और मजबूरन क़ुरैश ने अपने खास सुहैल इब्न अम्र को करार के लिए भेजा जिसे हुदैबियह करार कहा गया. इसके हिसाब से कोई भी क़ुरैश का शख्स जो वालिदैन की इजाज़त के बगैर मुहम्मद ﷺ की इताअत करता है उसे बिना शर्त वापिस भेजना होगा. जबकि इसके उलट अगर कोई भी शख्स मुस्लिम से क़ुरैश की तरफ जाता है उसे किसी की इजाज़त की जरूरत न होगी. आगे देखे.
Asslam o Alaikum bhai aap ki is Khidmat ko allah qabool kare. Jo remaining episodes hain unka translation urdu mein kab aaya ga… jazaka allah khairaa
AsSalam alykum
When next episode of Hazrat Umer Ibn khatab r.a series upload
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